Wednesday 18 April 2012

जरा हँस लीजिये जनाब

बजट और अप्रैल

      
अरे भागवान सुनती हो, वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं है, मैंने पत्नी से कहा तो वे रसोई से झुंझला कर बोलीं, अजी कौन सा दिन? पहली अप्रैल की तो नहीं कह रहे। अब मैं बेवकूफ बनने वाली नहीं हूं। यह मूर्ख दिवस आपको मुबारक।
भला तुम्हें बेवकूफ कौन बना सकता है? पूरा देश मूर्ख बनने वाला है, मैंने कहा।
कुछ साफ बताओगे भी या यों ही पहेलियां बुझाते रहोगे। मैं पहली अप्रैल को कई बार बेवकूफ बन चुकी हूं। अब मैं आपकी बातों में आने वाली नहीं। पिछले साल आपने पहली अप्रैल को ही तो मुझे मॉल भिजवा दिया था, यह कहकर कि मेरा पांच लाख की ज्यूलरी का ईनाम निकला है। मैं दौडी चली गई थी और आप आराम से कॉफी पीते रहे थे। मुझे मुंह लटका कर लौटा देख कितने हंसे थे आप! पत्नी ने कहा तो मैं बोला, सुनो श्रीमती रजनी शर्मा, बजट आया है, पूरे देश को मूर्ख बनाने वाला। आम आदमी को राहत देने वाला। हर चीज सस्ती मिलेगी। सुना है इस बार कॉस्मेटिक्स पर कोई कर नहीं लगाया गया है। केवल बिजली का बिल महंगा हुआ है। उसका भुगतान मुझे करना है, सो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं।
बजट और अप्रैलतो आप बजट की बात कर रहे हैं। बजट के नाम पर जनता को ही मूर्ख बनाती है सरकार। करों के कोडे लगाकर एरोप्लेन सस्ते कर देती है। वरना रेल किराया तो बढ ही गया है।
अजी देवी जी, अप्रैल तो होता ही है मूर्ख बनाने के लिए। सारे नए टैक्स अप्रैल से लागू हो जाते हैं और हम महंगाई की चक्की में पिसकर चटनी बन जाते हैं। मैंने कहा तो श्रीमती जी रसोई से निकलकर ड्राइंग रूम में आ गई, देखो जी, बस से आया-जाया करो। पेट्रोल के दाम हर तीसरे दिन बढ जाते हैं, ऐसे स्टेटस में क्या रखा है?
लेकिन यह क्यों भूल जाती हो श्रीमती जी अबकी बार इनकम टैक्स में अच्छी-खासी छूट दी गई है। हमें सरकार के किसी कदम की सराहना तो करनी पडेगी। मैंने कहा तो श्रीमती जी ने नहले पर दहला मारा, अजी यह तो चुनाव के लिए कर्मचारियों का वोट बैंक पक्का करने का तरीका है। सरकार देखो न कितनी जल्दी डीए बढाती है, ताकि सरकारी कर्मचारी आगामी चुनाव में उसके ही होकर रह जाएं। आपको पता है, आटा-दाल का भाव? चीनी की मिठास कडवी हुई जा रही है। आप हैं कि मूर्ख बनाने वाली सरकार के पक्ष में कसीदे पढ रहे हैं।
लेकिन आटा-दाल ही तो जीवन नहीं है। एसी सस्ते हुए हैं। अब हम इस पंखे से निजात पाकर एसी लगवा सकेंगे!
बिजली का बिल पांच हजार का भरोगे तो नानी याद आ जाएगी। चले हैं एसी की ठंडक लेने! कल कहोगे, फोर व्हीलर सस्ते हो गए तो क्या मेरे लिए फोर व्हीलर ला दोगे?
क्यों नहीं, फोर व्हीलर का लोन आधे घंटे में मिलता है।
और उसकी बढी हुई ब्याज दर?
इस तरह तो हम पेट्रोल भी कार में नहीं भरा पाएंगे। मैं तो भाई कर्ज का घी पीने का आदी हूं। यह जीवन आनंद लेने का है। कंजूसी करके तो हम कभी जीवन का आनंद ही नहीं ले पाएंगे। सच मैं टिंकू को स्कूटर पर छोडकर आता हूं तो शर्म आती है। टिंकू फोर व्हीलर में जाएगा तो हमारा रौब नहीं बढ जाएगा? मैंने अपनी टीस बताई तो श्रीमती जी भभकीं, पहले उसके स्कूल की फीस तो चुका दो। दिन में सपने देखना बंद करो। यथार्थ को देखो, उसका धरातल कितना कठोर है। एक मेहमान आ जाता है तो माथा खराब हो जाता है। उसे भगाने के लिए कितने उपाय करते हैं और जाने पर प्रसाद चढाते हैं।
सर्दियों में तुम्हारा भाई पंद्रह दिनों के लिए आया था, तो क्या हमने उसे भगा दिया था? बेकार की बातें मत किया करो।
बेकार की बातें तो आप कर रहे हैं। खबरदार जो मेरे भाई का नाम जबान पर लाए तो। वह तो मेरा भाई है। वह तो समर वेकेशन में फिर आएगा। क्या वह मेहमान हो जाएगा?
झगडो मत देवी जी, तुम्हारा भाई मेहमान है मेरे लिए। उसके खर्चे झेलना मेरे बजट में नहीं है। उसे अभी समझाओ, अपनी नौकरी के लिए अपने घर में रहकर कंपिटीशन की तैयार करे। यहां वह पिच्जा-बर्गर और आइसक्रीम का होकर रह जाता है। उसे घर का खाना कभी अच्छा भी लगता है? अभी भी समय है, हो सके तो उसे रोक लो। मैंने तो बहुत ही विनम्र भाव से कहा पर पत्नी तमतमा गई, कुछ तो लिहाज करो। आखिर वह मेरा भाई है। उसे बजट की दुहाई देकर रोक दूं? इतना कमाते हो। ऊपर की कमाई अलग से करते हो, फिर भी यह मरी महंगाई मेरे भाई के नाम लिख देते हो!
नहीं, ऐसी बात नहीं है। अब ऊपर की कमाई में दम नहीं है देवी। आजकल लोग काम धौंस-पट्टी से कराते हैं। देखती नहीं, रिश्वत-कमीशन खाने वालों के छापे पड रहे हैं। क्या तुम यही चाहती हो कि एक दिन मेरा भी यही हाल हो? मैं भी थोडा क्रोध में बोला, तभी कॉलबेल बजी तो हम दोनों के हाथों के तोते उड गए- यह संडे मूड को चौपट करने कौन आ गया? मैंने दरवाजा खोला तो वर्माजी खडे मुस्कुरा रहे थे। मैं अचकचाकर बोला, आइये न, बाहर क्यों खडे हैं।
वर्मा जी ने सोफे में धंसते ही कहा, शर्मा, तुम्हारे यहां आकर मुझे बहुत चैन मिलता है। अमां यार, क्या नसीब पाया है। भाई इस मौज का राज हमें भी तो बताओ!
सब ऊपर वाले की मेहरबानी है। वरना सरकार ने तो कोई कसर छोडी नहीं है। डेयरी ने दूध के भाव बढा दिए और सरकार ने चीनी-चाय की पत्ती के। क्या करेगा साधारण आदमी।
वर्मा जी बेशर्मी से बोले, कुछ भी हो, चाय तो पीकर जाऊंगा। जरा ठंडा पानी तो लाओ। गला सूख रहा है। 
लेकिन यह क्यों भूल जाती हो श्रीमती जी अबकी बार इनकम टैक्स में अच्छी-खासी छूट दी गई है। हमें सरकार के किसी कदम की सराहना तो करनी पडेगी। मैंने कहा तो श्रीमती जी ने नहले पर दहला मारा, अजी यह तो चुनाव के लिए कर्मचारियों का वोट बैंक पक्का करने का तरीका है। सरकार देखो न कितनी जल्दी डीए बढाती है, ताकि सरकारी कर्मचारी आगामी चुनाव में उसके ही होकर रह जाएं। आपको पता है, आटा-दाल का भाव? चीनी की मिठास कडवी हुई जा रही है। आप हैं कि मूर्ख बनाने वाली सरकार के पक्ष में कसीदे पढ रहे हैं।
 
मैंने जवाब दिया, वर्मा जी, फ्रिज तो खराब है। पानी तो, घडे का ही पीना पडेगा।
अरे शर्मा, फ्रिज नया क्यों नहीं ले आते। डबल डोर बडा वाला लाओ, फ्रिज तो काफी सस्ते हैं। इस कबाडखाने को बदलो भाई। सुना है सरकार ने भी दाम गिराए हैं।
वर्माजी की बात सुनकर एक बार तैश तो आया, फिर अतिथि होने के नाते मैंने बाअदब कहा, देखिए वर्मा जी क्या-क्या बदलें, नए बजट ने राहत तो दी है, लेकिन कमर तोड दी है। बाजार में इतनी चीजें आ गई हैं कि उन्हें खरीदना मेरे जैसे आदमी के बूते से बाहर है।
इस बीच पत्नी पानी का गिलास लेकर आ चुकी थीं। वर्मा जी पानी गटक कर बोले, इस बार तो टिंकू फ‌र्स्ट आया है। अकेली चाय नहीं चलेगी। बिना मीठा मुंह किए मैं जाने वाला नहीं हूं।
वर्माजी की बात सुनकर मेरा कलेजा मुंह को आ गया। पत्नी ने मुझे देखा और मैंने उसे। पत्नी ही बोली, आप कहें तो वनस्पति घी का हलवा बना दूं।
वर्मा जी भी ढीठ हैं, हलुवे में बुराई क्या है, पर हलुवा वनस्पति घी में बनाना कुछ जमा नहीं। इतनी बडी खुशी में देसी घी का हलुवा ही ठीक रहेगा। वैसे भी वनस्पति घी स्वास्थ्य के लिए हानिकरक होता है।
हमारे लाख बहाने के बावजूद वे देसी घी का हलवा खाकर ही गए और जाते-जाते यह भी कह गए, क्या महंगाई का रोना रोते रहते हो। इतना कमाते हो। खाओ-पियो, ऐश करो। वर्मा जी तो अंतध्र्यान हो गए और मैं सोचने लगा, यह कोढ में खाज क्यों आया था।
पत्‍‌नी बोली, अब जाने भी दो। जो हुआ सो हुआ। बच्चे के फ‌र्स्ट आने की खुशी में हलुवा ज्यादा नहीं है। अप्रैल फूल तो हमें ही बनना था, सो बन गए।
मैं भी चुपचाप चादर तानकर सो गया, लेकिन नींद आंखों में नहीं थी। बार-बार वर्मा, सरकार और महंगाई का नक्शा घूम रहा था। आगे चाहे जो हो, पर मेरे घर का बजट तो पहली अप्रैल को समर्पित हो ही गया था।

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