Friday 6 April 2012

सुहानी सुबह



सुबह का कल कल शुरू हो चुका है 
चिड़िया चहक चहक कर गान कर रही है 
मोर की पिन्हू पिन्हू सबको आकर्षित कर रही है 
कबूतर ये  गुटरगू  गुटरगू करके ये किसको बुला रहा है 
कोयल की कूह ये किसको रिझा रही है 
ठंडी ठंडी पवन मन को शीतलता पंहुचा रही है 

नया जोश नई उमंगें लेकर ये भोर हमे जगा रही है 
जागो नींद से, सोने वाले, फिर से ये सुहानी सुबह तुमको जगा रही है 
सूरज चाचू भी आकाश से झांक रहे है 
उनकी किरणों के लिए सब इधर उधर भाग रहे हैं  

मंदिर में घंटे की आवाज मंदिर बुला रही है 
आँखों में सपने दिल में उम्मीदें सजा रही है 
माँ के हाथो से जले दीपक की लौ नैनों की रोशनी बढ़ा रही है 
हर सवेरा लोगो के चेहरों पे नयी चमक ला रहा है 

भंवरा घर घर फूल  खिला रहा है 
फूलों की सुगंध से घर का आँगन महका रहा है 
तितलियाँ उड़ उड़ कर फूलों का मन बहला रही हैं 
और इसी तरह हर सुबह मन को खिला रही है 

स्वरचित(neha singh(8-4-12))   

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