Saturday 7 April 2012

ज्ञान की सुनामी से बचो , जिंदगी की पोथी को पढो


आज अपने जीवन में हर व्यक्ति कुछ न कुछ खोज रहा है। कोई सुख खोज रहा है कोई सुविधा खोज रहा है कोई चैन तो कोई सुकून खोज रहा है। जो व्यक्ति पड़े लिखे नहीं हैं वो लोग अपनी खोज को अधुरा छोड़ देते हैं पर जो व्यक्ति पड़े लिखे हैं वो इसके लिए किताबो का सहारा लेते हैं। और कई हद तक हमें उन खोजो के बारे में जानकारी भी मिलाने लगती है फिर हमे और जानकारी के और किताबें पदनी पढ़ती हैं। फिर धीरे धीरे हमें उन किताबो की आदत सी पद जाती है। लेकिन अन्त समय में हमे लगता है हमने इतनी किताबें पड़ी लेकिन फिर भी हमरी खोज की प्यास नहीं बुझी , वो अधूरी रही। क्योंकि पढने से तो सब कुछ मिल नहीं जाता हमे सारी क्रियाएं खुद करनी पड़ती हैं। उदाहरण के लिए अगर हम प्यासे हैं और पानी के बारे में पढने से तो हमारी प्यास नहीं बुझ  जाएगी, हम भूखे हैं तो भोजन के बारे पढने से हमारी भूख मिट नहीं जाएगी ।
                                                                    हमे हर चीज की अभिव्यक्ति देखनी पड़ती है अगर कोई फूल गहरे सागर  में खिलता है। तो उसे अपना व्यक्तित्व दर्शाने के लिए कोई अभिव्यक्ति नही देनी पड़ती। हमारे  जीवन में लोग बिना भाषा के नहीं रह सकते हैं हमे उसके लिए  संचार का प्रयोग करना पड़ता है ।इस संसार में फूल पेड़, पौधे, पक्षी , जानवर सभी वार्तालाप करते हैं लेकिन किसी को भाषा की कोई जरुरत नहीं होती । ये लोग अपना काम चला लेते हैं लेकिन मानव का काम बिना किसी भाषा के नहीं चल सकता है। मानव का अस्तित्व उसकी  भाषा अभिव्यक्ति पर। यही उसकी गरिमा और गौरव है और उसकी मुसीबत है।
अगर मानव दो चार किताबें पढ़ लें और कुछ डिग्रियां ले लें तो यो समझता है की वो ज्ञानी हो गया लेकिन ये उसकी भ्रान्ति होती है। क्योंकि उसने इतना सब कुछ तो पढ़ लिया पर वो अपनी जिंदगी को कभी नहीं समझ पाया है।

इसलिए हमे अपनी जिंदगी को समझना चाहिए और अपने प्राणों व अपनी अंतरात्मा के रहस्य को खोजना चाहिए। हमे किताबो में ही नहीं अटकना चाहिए। अपने जीवन का अभिप्राय अपने जीवन में खोजो। अपने प्राणों को पढो। हमारे प्राण ही हमारी ज्ञान की किताब हैं यही एक जीवन शास्त्र है और इस जीवन शास्त्र को हम जन्म के वक़्त से ही साथ लाये हैं। और हर व्यक्ति को वह  शास्त्र पड़ना चाहिए।
पोथी पढ़ पढ़ मर गए लोग
जीवन भर पड़े और भूल गए लोग
ज्ञान की उपलब्धि हो न सकी
 
ज्ञान तो विचार की उपलब्धि से पनपता है
पड़ोगे, सुनोगे, स्मृति में रखोगे
भरी हो जायेगा स्मृति का बोझ
जान लोगे तुम सब कुछ बिन पहचाने
शब्दों के कारन ज्ञानी न जाओ पहचाने
मन की पोथी को समझो
अपना जीवन शास्त्र समझ अपनाओ



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