Wednesday 28 March 2012

बेटी


 सपना था पर बना दिया सजा,
समझा नहीं किसी ने वो है फिजा,
 अपनों के बीच बना दिया बेगाना,
अपना सा आँगन लगे पराया,

आँगन में फूल खिलाती है बेटी,
रंगों से द्वार सजाती है बेटी,
दुःख नहीं सुख होती है बेटी ,

संवेदना थी बेटी बना दिया वेदना,
आस्था और वरदान थी पर बना दिया अभिशाप ,

उसका वजूद यूँ न मिटाओ,
जीवन का भर नहीं सहारा समझ अपनाओ,

सुख में थी वो साथ हर पल,
गम भी थी साथ वो बिन कहे साथ हर पल,

उलझी जिंदगी की सुलझन है बेटी,
गम के कांटे न समझो उनको सुख की कलियाँ है बेटी,

अनकही बात समझती है बेटी,
मदद को आपकी हर पल रहती तत्पर बेटी,

होती है हर हक़ की हक़दार बेटी ,
पर हक़ को न मांग प्यार मांगती है बेटी,

उनको सहेज कर रखना है तुम्हारा फर्ज ,
आँखों में आंसू नहीं लवो  पे ख़ुशी देना है तुम्हारा फर्ज,

आपकी आँखों का तारा होती बेटी,
जीवन अपना सेवा में बिताना चाहती,
जीवन उनका बोझ समझब न मिटाना कभी,
स्वरचित(*neha singh(22-3-12))
  


2 comments:

Anshika said...

its really good neha...:)

neha said...

Anshika said...

its really good neha...: