Sunday 25 March 2012

स्वार्थ और स्वार्थ



हमारा देश भारत कई सारी  संपदाओ के लिए विश्व विख्यात है, और हो भी कैसे न हमारे देश के महापुरुषों ने इतनी मेहनत जो की इसको सफल बनाने के लिए । क्या हम लोग भी अपने देश को सफल बनाने के लिए कभी कोई चिंतन या मनन करते हैं सबके अन्दर से यही जवाब होगा नहीं । आखिर क्यों ? नहीं करते हम देश के लिए कोई विचार ।

 क्योंकि आज हर तरफ स्वार्थ का बोलबाला है लोग स्वार्थ से इस तरह घिरे हुए हैं कि वो  सिर्फ और सिर्फ  अपने बारे में सोचते हैं । आखिर कब तक ये सब कुछ चलेगा क्यों आज लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं । ये बात सही है कि लोगो कि जरूरतें इतनी हैं कि उनके पास खाली समय नहीं होता है । पर हमे उसके लिए समय हर हालत में निकालना होगा । सोचिये अगर ये देश न होता,ये समाज न होता, तो हम कंहा रहते?  हमारी जरूरतें कंहा से पूरी होती ।
अगर हम अपने समाज के लिए और देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो हमे स्वार्थ भावना और अहं को पूर्ण रूप से त्यागना होगा । क्योंकि अगर हम एक हाथ से लेते हैं तो हमें दूसरे हाथ से देना भी चाहिए ।

  हमारे देश में यूँ तो चार वेद है:
ऋग्वेद
सामवेद
यजुर्वेद
अथर्ववेद
जो हमे कुछ न सिख देते रहते हैं ,तो.................................

अथर्ववेद में एक कथन भी है कि शतहस्त समाहार , सहस्त्रहस्त संकिर
इसका मतलब है कि सौ हाथो से जोड़ो और हजार हाथो से बिखेरो जी हाँ अगर हम अपने समय में से एक प्रतिशत समय भी समाज या देश के लिए निकल लेंगे तो हम कुछ न कुछ तो कर ही सकते है । पर हमे सब कुछ स्वार्थ कि भावना को त्याग कर करना होगा । सोचिये अगर हम अपने हर हफ्ते में से एक घंटा या दो घंटे और किसी के लिए देंगे तो हमारी समाज सेवा बेहतर हो सकती है । आज हर इन्सान कुछ न कुछ कमाता है और वो अपने कुछ पैसे गरीब लोगो, बीमार लोगो, भूखे लोगो को मदद करने में इस्तेमाल करेंगे। तो उनका कितना भला होगा । बशर्ते कि वो काम निस्वार्थ कि भावना से करना चाहिए ।
क्योंकि अगर हम किसी के कुछ छोटा सा काम भी करते हैं और निस्वार्थ रूप से हो तो वो जीवन चेतना में एक महासागर जैसा है । लेकिन हम किसी को करोडो रूपये दान में देदें लेकिन वो दान स्वार्थ पूर्ण  हो। तो वो कार्य एक महासागर में एक पत्थर फेकने के जैसा है ।

क्योंकि इस जीवन में हर इन्सान इतना व्यस्त है जो कि अपने जीवन के अच्छे बुरे कार्यो में विभाजन करने में असमर्थ  है  । तो हमे कोई भी कार्य करने से पहले अपने मन से एहसान कि और स्वार्थ कि भावना को निकाल  देना चाहिए । क्योंकि अभी तो आप ऐसा करने में संकोच नहीं करते हैं लेकिन जब कभी आप इसके बारे में सोचेंगे। तो आप अपनी ही नजर में संकुचित हो जायेंगे।क्योंकि स्वार्थ की भावना से यदि हम कोई परोपकार  भी करेंगे तो किसी फायदे की इच्छा हमारे काम की महानता को खत्म भी कर देगी।  तो आप भले ही छोटा काम करें पर करें निस्वार्थ मन से और फिर आप धीरे धीरे देखेंगे कि आप  समाज की और लोगो की सेवा करने में सच्चा सुख पाने लग जायेंगे । क्योंकि इसके विपरीत हम निस्वार्थ भाव से काम करेंगे तो वो मैं हमारे भविष्य के लिए सकारात्मक परिणाम लेकर आएगी ।

अगर आपको इस बात का यकीन न हो पढ़िए आगे ये कहानी जो आपको सीधे सरल शब्दों मे बता देगी की मैं क्या कहना चाह रही हूँ ..
एक बार एक पेड़ पर एक चिड़िया का  घोंसला था उस घोंसले मे कुछ दिन बाद दो अंडे आ गए |फिर उसमे से दो प्यारे प्यारे बच्चे निकले । एक दिन जब चिड़िया और चिड़ा उनके खाने के लिए दाना लेने गए हुए थे । तो एक बच्चा घौंसले से निचे गिर गया । उसकी टांग टूट गयी । वंही पास  में दो घर थे एक घर में राहुल रहता था एक घर में सोनू रहता था । जब राहुल अपने घर आया तो उसने देखा की उस बच्चे की टांग टूट गयी है। राहुल ने बच्चे को उठाया और उसकी मरहम पट्टी कर दी। और फिर उसे घौंसले में वापस रख दिया ।
एक दिन जब वो बच्चा बड़ा हुआ तो उसने राहुल के निस्वार्थ भाव से किये गए उपकार को उतरने की ठान ली। एक दिन वो एक चावल का एक दाना लेकर राहुल के घर पंहुचा। उसने उसको वो दाना दे दिया और उससे कहा  यह तुम्हारे उपकार का बदला है । एक बार तुमने मेरी टूटी टांग जोड़ी थी। तुम इस दाने को  अपने घर के सामने गाढ़ दो ।फिर इसका परिणाम देखना।
राहुल ने वैसा ही किया पर वो दाना बोने के बाद भूल गया की उसने कोई दाना भी बोया था। लेकिन  एक दिन जब वो सुबह जगा तो उसने देखा की उस दाने ने एक ऐसा पोधा बनाया है जिसमे चावल नहीं सोना और हीरे जवाहरात लगे हुए हैं । वो सब कुछ समझ गया उसने सारा सोना बाजार में जाकर बेक दिया और एक सुखी जीवन की शुरुआत कर दी ।


यह सब देख कर उसका पडोसी भी उसके पास आया और उससे पूछने लगा ,कि ये सब कैसे हुआ? तो उसने चिड़िया वाली बात बता दी । फिर क्या था उसका शैतानी दिमाग काम करने लगा । उसके घर के पास भी एक घौंसला था।  

वो चुपचाप से पेड़ पर चढ़ गया और उसने चिड़िया के  बच्चे को गिरा दिया। फिर नीचे आकर उसे उठा लिया और उसकी मरहम पट्टी करके उसे वापस घोंसले में बिठा दिया। 
कुछ समय बिताने के बाद उसके पास भी एक चिड़िया आई और उसे एक चावल का दाना दे गयी।
और उससे कह गयी कि तुम्हारे उपकार का फल है । इस जमीं में बो दो । फिर इसका परिणाम देखना । और तुरंत वो दाना बो दिया । वो दिन रात उसका  इंतजार करने लगा उसका सारा ध्यान उसी पर रहता था । एक दिन जब वो सुबह जगा तो जिस जगह उसने बीज बोया था उस जगह एक आदमी खड़ा था । सोनू ने उस आदमी से पूछा कि तुम कौन हो तुम तो उसने कहा पिछले जन्म में तुमने जो कारज लिया था उसी का हिसाब लेने आया हूँ । राहुल को सारा धन उसको देना पड़ा

तो आया कुछ समझ कि स्वार्थ भाव से और निस्वार्थ भाव से कि गयी मदद क्या है ।

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