Thursday 15 March 2012

औरत

"अबला नारी हाय! तुम्हारी यही कहानी "
"आँचल में है दूध ,आँखों मैं है पानी"

आज हमारे समाज में औरतें कदम से कदम मिलकर चल रही या ये कह लीजिये की एक कदम आगे भी हैं ।
पर आज भी औरतो के ऊपर होते आ रहे अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं । चाहे वो किसी भी रूप में हो जैसे लड़के - लड़कियों में भेदभाव , बाल विवाह, अशिक्षा आदि ।
औरते चाहे कुछ भी कर लें पर फिर भी वो पुरुष की नजरो में उनसे छोटी ही रहती है । वो पल पल दर्द झेलती है पर उफ़ तक नहीं करती और उसके दुःख को सब लोग उसका व्यवहार समझ कर देते टाल हैं । और औरतों पे प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से अत्याचार होते ही रहते हैं ।


औरत  
यंहा  औरत के दर्द को कोई समझता नहीं ,
दिन भर दुःख देते है पर दुःख हरता नहीं कोई,
सुख क्या होता है जाने नहीं शायद औरत कोई 
जो करते है जुलम औरतों पर उनकी जन्मदाती भी है औरत कोई ,
औरत पे अत्याचार कंही लोगो की फितरत तो नहीं कोई,
माँ, पत्नी, बहिन, बेटी है यंहा औरत हर पुरुष की कोई,
सिंदूर की खातिर सब कुछ गवाया पर उसकी कदर न जाने कोई,
पति की मौत पर यंहा औरत ही सती होई ,
पत्नी की मौत पर पति के घर है औरत और कोई,
इस संसार ने दिया उसको हर वक़्त दर्द वेह रोई,
यंहा औरत के दर्द को समझता नहीं कोई ,



स्वरचित नेहा  सिंह (15-3-2012)