पर्यावरण मानव को ईश्वर के द्वारा दिया गया अमूल्य उपहार है यह सारे समाज का या कहे की सारे विश्व का एक प्रमुख अंग है । पर्यावरण और ईश्वर प्रकृति वो दो पहलू हैं जिनकी पूजा और महत्ता के बिना जीवन अधूरा है। विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं।प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना! न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना !
पर्यावरण का निर्माण प्रकृति द्वारा प्रदान पांच तत्वों से मिलकर हुआ है वो तत्व पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश हैं। मनुष्य अपनी मूलभूत आवश्यकताओ के लिए जल, मिटटी, पेड़, पौधे, जीव जंतुओं पर निर्भर है। मनुष्य अपने जीवन चक्र के लिए इन सभी का दोहन करता आ रहा है और आगे भी मानव को इन सभी की आवश्यकता होगी जितनी कि अभी है, पर शायद आज सभी ये भूल चुके हैं।
ये बात कंही हद तक काफी सही है कि देश और समाज के विकास के लिए हमको आधौगीकरण और मशीनीकरण कि जरुरत है। वर्तमान समय में जहाँ हम एक तरफ हर काम सुगम बना रहे है वही हम दूसरी तरफ पर्यावरण के नियमो का उल्लंघन कर रहे हैं। मानव स्वार्थपूर्ति के लिए प्रकृति का अत्यधिक दोहन करने लगा है और पर्यावरण को असंतुलित बनाए हुए हैं ।जिसके साथ पर्यावरण ही नहीं मानव के लिए भी मुश्किलें उत्पन्न हो रही हैं।
औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण के युग में प्रकृति पर अत्याचार होने लगा है, परिणामस्वरूप पर्यावरण में प्रदूषण, अशुद्ध वायु, जल की कमी, बीमारियों की भरमार दिन-प्रतिदिन एक गंभीर चर्चा का विषय बनी हुई हैं, जिससे न तो मनुष्य प्रकृति को बचा पा रहा हैं और न ही खुद को । आज जहाँ मानव समाज विलासितापूर्ण जीवन की चाह लिए हुए प्रकृति का अति दोहन करता जा रहा हैं, वहीं वह अज्ञानतावश स्वयं की जान का भी दुश्मन बन चुका हैं।प्रदूषण कई प्रकार का होता है! प्रमुख प्रदूषण हैं - वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण ! मानव यह नहीं जनता है की उसके विकास में और सारे संसार के विकास मे पर्यावरण अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है क्योंकि अगर हम अपनी धरती माता को अपनी वसुंधरा को सुन्दर बनाना है । तो हमे पर्यावरण को बचाना अति आवश्यक है .....
माता का रूप धरती
माता का रूप धरती
हो सुन्दरतम अपनी ये धरा..
हो हरी भरी यह वसुन्धरा...
माता का रूप है ये धरती
हर पल पालन करती..."
है हित सभी का हित इसमें
हो संतुलित, अपना पर्यावरण
सुरक्षित हो जंतु नभ तल
पेड़ो को क्यों काटकर
काट रहे खुद के पैर
स्वम मिटा रहे सौन्दर्य तुम
वसुधा के अंगो का न करो सर्वनाश तुम
क्यों रण भूमि मे तब्दील कर रहे जन्मदाती है ये हमारी
नदियों की साँसे हैं रुकी रुकी सी
सागर भी हैं खड़े रुके रुके से
प्रकृति को होना पड़ रहा है मौन
पेड़ो के शव जो हैं धरती पर पड़े हुए
बनकर तुम दुशासन अनुयायी
क्यूँ करते धरती का चिर हरण
पीं -पीं, कु- कु, धम- धम ,
यही ध्वनी सुनाई है देती
जन्हा कंही भी नजर है जाती
उगती कंक्रीट की खेती
शेर, बया, जिराफ, दादुर,
देने को बस रहे उदाहरण
तारो की चमक हो रही धुंधली
कारखानों के धुएं से वायु हो रही धूमिल
ओजोन भी हुआ अब तो घायल
उसमे हो रहे छोटे बड़े छेद
आग उगलता है धरती का सीना
हिम पिघल बह रहा स्वेद
कितने सारे बेल फूल हो गए दाह
तिल तिल कर मरने से अच्छा एक बार में हो दाह
लुप्त हो गयी कई वनस्पति की जाति
बैबून , तुम्बी, और घाट परण
हो जागरूक अब करे सभी प्रयत्न
बचाना है धरती माता को हो सबका यही प्रण
है सभी का हित इसमे
हो संतुलित अपना पर्यावरण
सुरक्षित हो जीव जंतु नभ तल
पर्यावरण संरक्षण में वृक्षो का महत्व
पर्यावरण संरक्षण में वृक्षो का महत्व बहुत ही ज्यादा है। जिस तरह आज औधोगीकरण के युग में वृक्षो की अंधाधुन्द कटाई हो रही है। आज समाज सेवी संस्थाओं द्वारा जनता को प्रोत्साहित किया जा रहा है।कि वह पेड़ लगाये , लेकिन आज वृक्ष रोपण को अनिवार्य बना देना चाहिए । तभी देश का विकास और पर्यावरण का संरक्षण संभव है । वृक्ष हमारे प्राण है क्योंकि वो हमे प्राण वायु देते हैं । सघन वनों को तो हमारी धरती के फेफड़े कहा जाता है ।वन ही वायु के शोधक होते हैं वनों से ही हमे जीवन मिलता है। फिर क्यों हम इन मूक परमार्थी को काटने में लगे हुए है और इनके काटे जाने का विरोध भी नहीं करते हैं ।आखिर कब तक अपने विनाश का कारण हम खुद ही बनते रहेंगे । वनों की अंधाधुन्द कटाई से जंगली जानवरों का निवास नष्ट हो रहा है ,वन प्रतिपालित जीवो का मरण हो रहा है । इसी वजह से आये दिन जंगली जानवर रिहायशी इलाको में आते रहते हैं और नुकसान पंहुचाते हैं । बस्तियों व छोटे शेहरो से पेड़ गायब हो रहे है वंहा पेड़ की छाया में खड़े होने का सुख शायद ही कोई व्यक्ति ले पता हो । कहा जाता है की जंगल में मंगल होता है जंगल ही जलवायु के रक्षक होते हैं फिर क्यों लोग इसको नष्ट करने में लगे है । ऐसे कैसे हो सकता है विकास ?
वृक्ष का दर्द
वृक्ष का दर्द किसने है जाना
अकेले वृक्ष को किसने है अपना माना
दर्द किसी का कोई नहीं जान पाया
एक वृक्ष के अंतर मन में कोई नहीं झाँक पाया
दो गज जमीं में अपना जन्हा है इसने पाया
कितनी विशाल है ये धरती कोई वृक्ष कंहा है ये जान पाया
काश अपने सिमित स्थान को ये विस्तृत कर पता
इंसान की तरह वृक्ष भी चल पाता
लेकिन मन के पाँव से ना शरीर चलता
ना ही मन के हाथो से ये अपनी रक्षा कर पाता
इससे रोज जोड़ते नए रिश्ते पर कोई नहीं निभाता
इस निरंतर दौड़ती दुनिया में ये हमारे साथ नहीं चल पाता
सूरज के निकालने से सूरज के ढलने तक
जीवन के बनने से जीवन के मिटने तक
जल ही जीवन है
कहते हैं " जल ही जीवन है " और " बिन पानी सब सून " यानी जल के बिना हम जीवन की कल्पना ही नही कर सकते और बिना पानी के इस धरती पर कोई रहना ही नही चाहेगा तथा बिना पानी के धरती की सारी हरियाली बिल्कुल ख़त्म हो जायेगी पानी के बिना साफ - सफाई नही हो पायेगी और सारी पृथ्वी का पर्यावण प्रदुषित हो जाएगा तथा पृथ्वी रहने
लायक नही रहेगी इस कारणवश पृथ्वी मानव विहीन हो जाएगी
लायक नही रहेगी इस कारणवश पृथ्वी मानव विहीन हो जाएगी
एक कहावत है "घर की मुर्गी दाल बराबर "यानी हम पानी के सन्दर्भ में यह कह सकते है की हम पानी की तलाश में सौर मंडल के कई सारे ग्रहों पर खाक छान रहे है मगर अपनी धरती पर मौजूद पानी की कद्र ही नहीं कर रहे है I पानी एक रासायनिक पदार्थ है वैसे तो ये अपनी सामान्य अवस्था में ही प्रयोग किया जाता है पर कभी कभी हम इसको बर्फ, भाप, आदि के रूप में भी प्रयोग करते हैं ।वृक्ष की तरह जल भी हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । मनुष्य जल क बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। मैं कहना चाहूंगी उन लोगो से जो पानी को बर्बाद करते हैं की क्या उन्होंने पानी के बिना जीने की कोई कला सिख ली है अगर हाँ तो वो आने वाली पड़ी को भी वो कला सिखा दे । क्योंकि जिस तरह से आज पानी की बर्बादी हो रही है । भविष्य में लगता है पानी बचे ही ना।
हम अगर इस मुसीबत से उबरना हैं........तो पानी की बचत करे और संरक्षित करे
आज भारत ही नही वरन संपूर्ण विश्व मे सबसे बड़ी समस्या है गिरते भू जल स्तर की । आज सभी पानी की समस्या को लेकर गंभीर रूप से चिंतित है। बर्तमान स्थिति को देखते हुए भविष्य मे पानी की पर्याप्त प्रचुरता हो और अगली पीढ़ी को पानी पीने को मिले हमे यही प्रयत्न करना चाहिए । आज हम सजग ना हुए तो अगली पीढ़ी हमे माफ़ ना करेगी। भू जल क म है । बढ़ते शहरीकरण के कारण गहरे बोरिंग करने के कारण पानी की सतह बहुत नीचे पहुच गयी है उसका पोषण करना बहुत ज़रूरी हो गया है|
कुछ सादा तकनीको को अपनाकर हम जल को संरक्षित कर सकते है. यह वाटर हावेस्टिंग सिस्टम ही आगामी पीडी को प्यासा मरने से बचा सकती है. अपने घर की छत का पानी एकत्रित कर अपने बोर वेल को चार्ज कर सकते है इसके कारण आपके घर के आसपास का जल स्तर बढ़ जायेगा। यह उपाय इतना महत्वपूर्ण है की एक घंटे की बारिश आपको एक साल का पानी उपलब्ध करा सकती है। यदि 1000 फीट की छत है और एक सेंटी मीटर बारिश होती है तो लगभग 1000 लीटर पानी एकत्रित होता है और यदि एक साल मे यदि 40 इंच बारिश होती है तो एक लाख लीटर पानी भू तल मे जायेगा ।इससे भू जल की गुणबत्ता भी बढ़ेगी और यह मिनरल वाटर से भी अधिक शुद्ध होता है ।
याद रखे पानी की एक एक बूँद क़ीमती है जल ही जीवन है .कृपया जल को सरक्षित करने का संकल्प ले।आप सोच रहें होंगे की मैंने यह सब कितनी आसानी से कह दिया जबकि कहने और करने में फर्क होता है मगर कहते है ना
आज भारत ही नही वरन संपूर्ण विश्व मे सबसे बड़ी समस्या है गिरते भू जल स्तर की । आज सभी पानी की समस्या को लेकर गंभीर रूप से चिंतित है। बर्तमान स्थिति को देखते हुए भविष्य मे पानी की पर्याप्त प्रचुरता हो और अगली पीढ़ी को पानी पीने को मिले हमे यही प्रयत्न करना चाहिए । आज हम सजग ना हुए तो अगली पीढ़ी हमे माफ़ ना करेगी। भू जल क म है । बढ़ते शहरीकरण के कारण गहरे बोरिंग करने के कारण पानी की सतह बहुत नीचे पहुच गयी है उसका पोषण करना बहुत ज़रूरी हो गया है|
कुछ सादा तकनीको को अपनाकर हम जल को संरक्षित कर सकते है. यह वाटर हावेस्टिंग सिस्टम ही आगामी पीडी को प्यासा मरने से बचा सकती है. अपने घर की छत का पानी एकत्रित कर अपने बोर वेल को चार्ज कर सकते है इसके कारण आपके घर के आसपास का जल स्तर बढ़ जायेगा। यह उपाय इतना महत्वपूर्ण है की एक घंटे की बारिश आपको एक साल का पानी उपलब्ध करा सकती है। यदि 1000 फीट की छत है और एक सेंटी मीटर बारिश होती है तो लगभग 1000 लीटर पानी एकत्रित होता है और यदि एक साल मे यदि 40 इंच बारिश होती है तो एक लाख लीटर पानी भू तल मे जायेगा ।इससे भू जल की गुणबत्ता भी बढ़ेगी और यह मिनरल वाटर से भी अधिक शुद्ध होता है ।
याद रखे पानी की एक एक बूँद क़ीमती है जल ही जीवन है .कृपया जल को सरक्षित करने का संकल्प ले।आप सोच रहें होंगे की मैंने यह सब कितनी आसानी से कह दिया जबकि कहने और करने में फर्क होता है मगर कहते है ना
"हिम्मत - ऐ -मर्दा तो मदद - ऐ - खुदा " यानि जो हिम्मत दिखाता है उसकी मदद खुदा भी करता है ।
अब बात करते है हैं धरती माता की जी हाँ हमारी धरती माता अब कुछ ज्यादा ही गरम हो चुकी हैं साफ़ साफ़ कहें तो ग्लोबल वार्मिंग ।ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है. वैज्ञानिको का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा।
इसका असर दिखने भी लगा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान पसरते जा रहे हैं. कहीं असामान्य बारिश हो रही है तो कहीं असमय ओले पड़ रहे हैं. कहीं सूखा है तो कहीं नमी कम नहीं हो रही है।इस परिवर्तन के पीछे ग्रीन हाउस गैसों की मुख्य भूमिका है. जिन्हें सीएफसी या क्लोरो फ्लोरो कार्बन भी कहते हैं. इनमें कार्बन डाई ऑक्साइड है, मीथेन है, नाइट्रस ऑक्साइड है और वाष्प है.। ये गैसें वातावरण में बढ़ती जा रही हैं और इससे ओज़ोन परत की छेद का दायरा बढ़ता ही जा रहा है.। ओज़ोन की परत ही सूरज और पृथ्वी के बीच एक कवच की तरह है। आगरा वो कवच ही नहीं रहेगा तो हम क्या करेंगे ?
इसका कारण हैं..................
तेज़ी से हुआ औद्योगीकरण है, जंगलों का तेज़ी से कम होना है, पेट्रोलियम पदार्थों के धुँए से होने वाला प्रदूषण है और फ़्रिज, एयरकंडीशनर आदि का बढ़ता प्रयोग भी है।
क्या आपने सोचा है क्या होगा इसका असर?
इस समय दुनिया का औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड है और वर्ष 2100 तक इसमें डेढ़ से छह डिग्री तक की वृद्धि हो सकती है.।एक चेतावनी यह भी है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तत्काल बहुत कम कर दिया जाए तो भी तापमान में बढ़ोत्तरी तत्काल रुकने की संभावना नहीं है.।पर्यावरण और पानी की बड़ी इकाइयों को इस परिवर्तन के हिसाब से बदलने में भी सैकड़ों साल लग जाएँगे.।
ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिएहमे सीएफसी गैसों का ऊत्सर्जन कम रोकना होगा और इसके लिए फ्रिज़, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं।क्योंकि आज मानव अपना घर तो ठंडा कर लेता है लेकिन वो वातावरण को इतना गरम कर देता है जिसका परिणाम है ग्लोबल वार्मिंग । औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकले वाला धुँआ हानिकारक हैं, और इनसे निकलने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड गर्मी बढ़ाता है. इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे।
वाहनों में से निकलने वाले धुँए का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख़्ती से पालन करना होगा।
उद्योगों और ख़ासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी.।और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा.।
अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर
नियंत्रण पाया जा सकता है।.
नियंत्रण पाया जा सकता है।.
ध्वनि प्रदूषण के अंतर्गत आता है विभिन्न वाहनों से पैदा होने वाला शोर, आतिशबाजी का शोर, चुनाव प्रचारों और धार्मिक प्रचारों का शोर, दशहरा होली के दिन बजने वाला कान फाडू संगीत या आज कल शादी ब्याह में चला डी.जे. का नया शौक ।
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