सुबह का कल कल शुरू हो चुका है
चिड़िया चहक चहक कर गान कर रही है
मोर की पिन्हू पिन्हू सबको आकर्षित कर रही है
कबूतर ये गुटरगू गुटरगू करके ये किसको बुला रहा है
कोयल की कूह ये किसको रिझा रही है
ठंडी ठंडी पवन मन को शीतलता पंहुचा रही है
नया जोश नई उमंगें लेकर ये भोर हमे जगा रही है
जागो नींद से, सोने वाले, फिर से ये सुहानी सुबह तुमको जगा रही है
सूरज चाचू भी आकाश से झांक रहे है
मंदिर में घंटे की आवाज मंदिर बुला रही है
आँखों में सपने दिल में उम्मीदें सजा रही है
माँ के हाथो से जले दीपक की लौ नैनों की रोशनी बढ़ा रही है
हर सवेरा लोगो के चेहरों पे नयी चमक ला रहा है
भंवरा घर घर फूल खिला रहा है
फूलों की सुगंध से घर का आँगन महका रहा है
तितलियाँ उड़ उड़ कर फूलों का मन बहला रही हैं
और इसी तरह हर सुबह मन को खिला रही है
स्वरचित(neha singh(8-4-12))
No comments:
Post a Comment