Friday 3 February 2012

geetanjali

 
सूर्य अस्त हो चुका है
उसकी परछाई  धरती का आलिंगन करने आई है
मेरे पात्र  को भरने के लिए बहे जा रहे समय की नदी थम सी गयी है ..
जल संगीत के करुण स्वर की वाणी से,
सांध्य पवन का अंतस  परिपूर्ण   है 
ओह  इस संध्या का छाया अँधेरा मनो मुझे बुला रहा है 
एकांत नीरस पथ पर कोई यात्री दिख नहीं रहा 
वायु शांत है जल तरंगे नदी के तीर पर बैठ सी गयी हैं 
                                (गीतांजली)
मुझे पता नहीं की  घर लौटूंगा की नहीं 
कोई मिलेगा या न मिलेगा , यह मुझे नहीं मालूम 
उस घाट पर एक नन्ही सी नाव में बैठा 
कोई अन्जान आदमी वेदना भरी 
किन्तु आकर्षक बांसुरी बजा रहा है
या की मुझे बुला रहा है ...
(गीतांजली)

 वन पर्वतों में आज गुंजन सुनाई नहीं देता 
सब घरो के द्वार आज बंद हैं ...
निर्जन रास्ते पर तू यूँ अकेला क्यूँ है?
किसकी प्रतीक्षा में बैठा है?
                                (गीतांजली)

अन्तकरण  में आज कैसा कलरव उठा है 
द्वार -द्वार के अवरोध छिन्न हो गए हैं 
आज सावन के बादलों में उन्माद भर गया है..
आज घर के बहार कौन जायेगा?
                                 (गीतांजली )
इस उत्सव में मुझे बांसुरी पर गाने का काम तुने सौंपा है 
इसलिए मेरे जीवन के सब हसी रुदन 
गीतों के स्वरों मैं गूँथ गए हैं ...
                  (गीतांजली)

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