Tuesday 31 January 2012

चुपके से



काश  कि, चुप से झरने का झर -झर बढ़ जाये..
काश  कि ,चुप से झरने का स्वर हमारे मन  में भर जाये ।


काश  कि ,चुप से चाँद की चांदनी घर को  रोशन कर जाये ..
काश  कि ,चाँद की रौशनी हमारे नैनो में भर जाये ।
 



काश  कि  ,चुप से हमारे जीवन का रहस्य गहरा जाये.. 
काश  कि ,वो रहस्य हमारे सपनो में खुल जाये ।

 
काश  कि, चुप से ये गम के बादल ढल जाये.. 
काश  कि, चुप से ये गम ख़ुशी में बदल जाये ।

 


काश  कि ,चुप से हर इन्सान का सुख बढ़ जाये..
काश  कि  , चुप से बदल सुख कि वर्षा कर जाये ।
काश  कि, चुप से राहों का हर पत्थर हट जाये..
काश  कि, चुप से हमारी मंजिल हमे मिल जाये । 
 
काश  कि, चुप से नभ  से एक तारिका टूट कर  गिर जाये..
काश  कि, चुप से वो सबके ख्वाब पूरे कर जाये।
 
काश  कि, चुप से ये धरती पर अम्बर से एक फ़रिश्ता आ  जाये ..
काश  कि, चुप से वो सारे गुनाहों को मिटा जाये ।


काश  कि, चुप से ये सब कुछ हो जाये..
और इस जिंदगी का हर कण ख़ुशी से भर जाये।   



नेहा सिंह

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