क्या होता है रंग कफ़न का ,
यही कहेंगे हम उजला रंग होता है कफ़न का,
गाढ़ दिया मिटटी में पर रहा ज्यों का त्यों,
पुरुष हो या स्त्री सफ़ेद ही होगा कफ़न,
पर देखा है इन आँखों ने लाल रंग का कफ़न,
थी एक अर्थी गुजरती अन्दर था लाल जोड़ा ,
सपना था एक लड़की का दहेज़ रुपी कफ़न ने तोडा,
रोते हैं ज्यादा लड़की को जन्म देने वाले,
लेते जो हैं दहेज़ लड़की को ब्याहने वाले ,
जब गुजरी अर्थी तो कफ़न नहीं था वो दुलहन का जोड़ा,
हाथो में थी मेहंदी पैरो में था माहवार थोडा ,
लड़की ने बाप ने दिया जो था दहेज़ थोडा,
उसी दहेज़ रुपी कफ़न ने जिंदगी का रुख मोड़ा
सगाई टूटी और बारात भी न थी आई
लड़की की आँखों में आंसू की लहर छाई,
बाप की बदनामी की चिंता लड़की को सताई ,
जाकर नदी किनार उसने छलांग लगाई,
दहेज़ रुपी कफ़न ने फिर एक और संख्या बढ़ाई,
डोली तो सजी नहीं अर्थी को सजा दिया,
मेहंदी की रंग की जगह खून का रंग चढ़ा दिया ,
कहता किसको वो बाप अपनी व्यथा ,
बेटी के जाने के गम में बाप भी चल बसा,
कौन है जो सुनेगा हर गरीब की दास्ताँ,
मौन होकर समाज पत्थर की तरह है खड़ा ,
दहेज़ रुपी कफ़न ने लुटाया, जलाया, मिटाया, आशियाँ ,
क्यूँ नहीं है रहा है याद डर समाज को अपने फ़साने का,
लड़कियों से ही तो रोशन है जहाँ तुम्हारा ,
लड़कियों का सौदा करना कान्हा का न्याय है तुम्हारा ,
नोट नहीं फूलों के हार पहनाना चाहिए,
बेटियों को बाग़ का फूल समझ अपनाना चाहिए,
उठाना नहीं चाहिए फायदा गरीबों की लाचारी का,
बदल डालनी चाहिए ये प्रथा वास्ता है सबको अपनी खुद्दारी का,
जिस दिन दहेज़ हद से बढ़ जायेगा ,
ये धरती अम्बर स्थिर हो रुक जायेगा ,
तो छेड़ दो लड़ाई दहेज़ रुपी कफ़न के खिलाफ,
अब लेना होगा दहेज़ लेने वालो से हर हिसाब.
स्वरचित neha singh (21-3-2012)